“तेरी आँखें हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी तेरी आँखें... पलकें खुलती हैं तो, यूँ गूँज के उठती है नज़र जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई हो तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें”